Jayeshbhai Jordaar Review: फुस्स निकले हमारे जयेशभाई, शानदार अदाकारी, ले डूबी कमजोर कहानी


जयेशभाई जोरदार का ट्रेलर देखकर बहुत मजा आया था. सबसे बढ़िया तो रणवीर सिंह का लुक और उनका वो गुजराती बोलने का स्टाइल लगा था. बीच-बीच में ऐसे फनी सीन्स भी दिखाए थे कि लगा कि ये फिल्म तो सही मायनों में जोरदार निकलने वाली है. वो कहते है ना कॉमेडी के साथ-साथ कोई संदेश देने वाली फिल्म. राजकुमार हिरानी की फिल्मों में तो ऐसा हर बार दिख जाता है. इस बार डायरेक्टर दिव्यांग ठक्कर भी उसी प्रयास में लगे हैं. अब हमारे जयेशभाई कितने जोरदार हैं, कितने असरदार हैं, ये हम से जान लीजिए.

कहानी

गुजरात का एक गांव और वहां का सरपंच (बोमन ईरानी) जो खुद तो पुरुष प्रधान वाली मानसिकता रखता ही है, अपने समाज को भी वही रास्ता दिखाता है. गांव में कोई लड़का, लड़की को छेड़ दे तो लड़की का साबुन से नहाना बंद करवा देना उसका तर्क है. उस सरपंच का बेटा है जयेश (रणवीर सिंह), उसकी पत्नी है मुद्रा (शालिनी पांडे) और एक बेटी भी है. पांच बार मुद्रा का गर्भपात करवा दिया गया है क्योंकि परिवार को वारिस बढ़ाने के लिए लड़के की दरकार है. गुजराती में इसे नानका कहते हैं. अब मुद्रा फिर पेट से है, डॉक्टर ने हिंट दे दिया है 'जय माता दी', यानी की बच्ची आने वाली है.ट्रेलर में ही पता चल गया था कि जयेश समाज और अपने पिता की सोच से सहमत नहीं है. ऐसे में जैसे ही बच्ची वाली खबर पता चलती है, उसकी दुनिया में भूचाल आ जाता है और शुरू होता है भागने का सिलसिला, समाज से भागने का, अपने परिवार से भागने का और कहीं ना कहीं सच्चाई से भागने का. अब कहां जाकर ये भागादौड़ी खत्म होती है, क्या मुद्रा उस बच्ची को दुनिया में ला पाती है, क्या जयेश का परिवार अपनी सोच बदल पाता है, बस ये कुछ सवाल हैं जिनके जवाब आपको 120 मिनट की फिल्म देखने के बाद मिल जाएंगे.

वो पटाखा जो फुस्स हो गया

दिवाली पर जब आप कभी बड़े उत्साहित होकर कोई पटाखा लेकर आते हैं, कह लीजिए वो 100 स्काई शॉट वाले, तो अलग ही लेवल का क्रेज रहता है. इंतजार होता है कि कब जलाएंगे और एक शानदार आतिशबाजी देखने को मिलेगी. लेकिन अगर दिवाली वाले दिन आपकी जिंदगी में खेला हो जाए और वो पटाखा जलते ही फुस्स निकले.....कैसा लगेगा? जो भाव आपके मन में तब आएंगे, वैसा ही कुछ हमे ये जयेशभाई जोरदार देखकर लग रहा है. ट्रेलर देखने के बाद मन मान चुका था कि कोई बढ़िया एंटरटेनिंग फिल्म मिलने वाली है, बीच-बीच में कोई सीख भी मिल जाए, इससे बेहतर क्या हो सकता था. लेकिन हमारे जयेशभाई एकदम फुस्स निकले हैं. कहानी रेत की तरह हाथ से फिसल गई और सिर्फ टुकड़ों में कुछ किस्सों को परोस दिया गया है.

तीन मिनट का ट्रेलर, उतना ही मनोरंजन!

इसको ऐसे समझिए कि जयेशभाई जोरदार का ट्रेलर देखकर आपको जिन-जिन सीन्स पर हंसी आई थी, या जहां आप थोड़ा सोचने को मजबूर हुए थे, पूरी फिल्म में भी आप सिर्फ उन्हीं सीन्स में हंसने भी वाले हैं और थोड़ा बहुत सोचने को मजबूर भी हो सकते हैं. जयेशभाई जोरदार का ट्रेलर करीब तीन मिनट का है, तो बस उतनी देर का ही आप एंटरटेनमेंट मान लीजिए क्योंकि बाकी फिल्म तो एकदम फ्लैट लगी है. फ्लैट भी क्या बोरिंग कह लीजिए...बस एक के बाद एक सीन आते जाएंगे और आप मनोरंजन की दरकार में रह जाएंगे. इस सब के अलावा आपको बचकानी हरकतों की एक ऐसी डोज दी जाएगी, जिसकी मात्रा पोस्ट इंटरवल तो बहुत ज्यादा लगेगी. मतलब जितना बचकाना आप सोच सकते हैं, फिल्म आपको उस मामले में निराश नहीं करेगी. छोटी सी हिंट दे रहे हैं, स्पॉयलर नहीं बनने वाला है. फिल्म में 'किसिंग' की जो व्याख्या की गई है, बस वो देख तो आप चकरा जाएंगे.

एक्टिंग ने लाज बचाने की कोशिश की

अब निराश कहानी और बचकानी हरकतों के बीच सिर्फ एक राहत है या कह लीजिए उम्मीद की किरण. जयेशभाई जोरदार में एक्टिंग सभी कलाकारों की अच्छी है. लेकिन सिर्फ एक्टिंग, कमजोर कहानी ने उनके किरदारों को निखरने का कोई मौका नहीं दिया है. जयेश के रोल में रणवीर की मेहनत दिखी है, एक्सप्रेशन से लेकर बोलने के अंदाज तक, किरदार को अपना बनाने का प्रयास रहा है. लेकिन बीच-बीच में उनकी ओवरएक्टिंग ने मजा किरकिरा भी किया. मुद्रा वाले रोल में शालिनी पांडे भी अपना काम कर गई हैं. रणवीर के साथ उनकी केमिस्ट्री भी ठीक-ठाक कही जाएगी. सरपंच बने बोमन ईरानी, उनकी पत्नी के रोल में रतना पाठक भी अपने किरदारों के साथ न्याय कर गए हैं. जयेश-मुद्रा की बेटी बनी जिया वैद्य ने फिल्म में थोड़ा फन एलीमेंट जोड़ा है.

डायरेक्टर की गलतियां जो पड़ी भारी

जयेशभाई जोरदार के डायरेक्टर दिव्यांग ठक्कर के काम पर बात करना भी जरूरी हो जाता है. गुजराती सिनेमा में उनका बेहतरीन अनुभव रहा है, लेकिन शायद बॉलीवुड फिल्म बनाने में वे गच्चा खा गए. पहले तो जो मुद्दा उन्होंने फिल्म में उठाया था, वो कोई नया नहीं है, इतनी फिल्में पहले भी बन चुकी हैं कि सभी को वो ज्ञान कंठस्थ हो चुका है. ऐसे में उन्हें तो बस एक काम करना था, कुछ अलग अंदाज में दर्शकों तक अपना संदेश पहुंचाना था. लेकिन उस एक काम में ही वे पूरी तरह फेल हो गए हैं. ना वो नया एंगल ला पाए हैं, ना कोई ऐसा तर्क दे पाए कि दर्शक फिल्म देख किसी सोच में डूब जाएं. बस फिल्म खत्म होते ही तुरंत उठने का मन किया. अच्छी बात ये रही कि उन्होंने अपनी तरफ से ज्यादा भूमिका बांधने की कोशिश नहीं की, सीधे मुद्दे पर आए, लेकिन साथ में कहानी लाना शायद भूल गए. इसी वजह से जयेशभाई 'जोरदार' होने के बजाय बोरिंग से हो गए.

इस समीक्षा के बाद बस एक आखिरी सवाल- साउथ की फिल्मों ने लीक से हटकर कंटेंट दिखाना शुरू कर दिया है....बॉक्स ऑफिस पर उसका असर तो सभी देख रहे हैं, बॉलीवुड ऐसा कब करेगा? इंतजार अभी लंबा...बहुत लंबा रहने वाला है.

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