आमेर की शिला माता की कहानी

 ऐतिहासिक इमारतों और सुन्दर पर्यटन स्थलों के लिए मशहूर जयपुर दुनियाँ भर के सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता हैं। जयपुर से 10 किमी दूर आमेर के किले में स्थापित माता शिला देवी का मंदिर अपनी बेजोड़ स्थापत्य कला के लिए जाना जाता हैं। शिला माता काली माँ का रूप हैं और कछवाहा राजवंश की कुलदेवी रही हैं और इन्ही के आशीर्वाद से आमेर के राजा मानसिंह ने 80 से अधिक युद्धों में विजय पाई थी।




आमेर की शिला देवी, लायो राजा मान (आमेर की शिला माता की कहानी) 

1580 ईस्वी में शिला देवी की प्रतिमा आमेर के राजा मान सिंह लेकर आये थे। इसलिए एक कहावत जयपुर में प्रचलित है, ” सांगानेर को सांगो बाबो जैपुर को हनुमान, आमेर की शिला देवी लायो राजा मान। “ मानसिंह अकबर के सेनापति थे और उनके आदेश पर युद्ध लड़ने जाया करते थे। एक बार जब वे बंगाल के गवर्नर नियुक्त किये गए, तो जसोर (जो की वर्तमान में बांग्लादेश में हैं), के राजा केदार से लड़ाई लड़ने गए। लड़ाई में विजय हासिल करने बाद वे शिला देवी की प्रतिमा को साथ में लेकर आमेर आए और भव्य मंदिर में स्थापित करवा दिया। इस विषय में इतिहासकारों के विभिन्न मत है, जो कि इस प्रकार है।

पहला मत 
राजा केदार ने लड़ाई में हार जाने पर भेंट स्वरुप माता की प्रतिमा मानसिंह को दे दी थी। साथ ही अपनी पुत्री का विवाह भी उनसे करवा दिया था।

दूसरा मत 
जब राजा मानसिंह को लड़ाई में सफलता नहीं मिली तो पता चला कि राजा केदार के पास काली माता की प्रतिमा है और उनके आशीर्वाद से राजा को कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। इस पर मानसिंह ने माता की पूजा की और उनसे अपने साथ चलने की विनती की। माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। साथ ही माता ने की राजा से अपने साथ ले चलने व अपनी राजधानी में मंदिर बनाने के लिए कहा। आमेर के राजा को माता के आशीर्वाद से लड़ाई में जीत मिली और वचन के मुताबिक वे माता की प्रतिमा को साथ ले आए ।

तीसरा मत 
राजा केदार को माता ने कहा था कि जब तक राजा स्वयं उन्हें जाने के लिए नहीं कहेगा, वे नहीं जाएँगी। राजा मानसिंह की पूजा से प्रसन्न होकर माता केदार की पुत्री के वेश में बैठ गई। जब केदार ने अपनी पुत्री को देखा तो कहा कि जा बेटा, यहाँ से बाहर चली जा, क्योंकि मैं पूजा कर रहा हूँ। इस प्रकार माता ने अपने जाने की बात स्वयं राजा केदार से कहलवा दी। जब केदार को इस बात का पता चला तो उसने माता की प्रतिमा को समुद्र में फिकवा दिया, जहाँ से राजा मानसिंह ने उन्हें निकाला और आमेर ले कर आ गए।


क्या हुआ जब माता को नरबलि देना बंद किया गया 

ऐसा माना जाता है कि माता ने राजा मानसिंह से वचन लिया था कि उन्हें प्रतिदिन एक नरबलि दी जाएगी। कुछ समय तक तो राजाओं ने वचन को निभाया, लेकिन बाद में नरबलि के स्थान पर पशुबलि दी जाने लगी। इस पर माता रुष्ट गईं और मुख एक तरफ मोड़ लिया। आज भी माता का मुख तरफ मुड़ा हुआ है। आखिरी बार पशुबलि 1972 में दी गई थी। इसके बाद जैन धर्मावलम्बियों के विरोध के बाद इसे बंद दिया गया।


प्रतिमा के उत्तराभिमुख होने का कारण 

मान्यता यह भी है कि जयपुर के निर्माण के समय काफी समस्याएं आ रही थी। तब पंडितो ने सवाई जयसिंह को सलाह थी कि माता की प्रतिमा पूर्वमुखी होने के कारण उनकी तिरछी दृष्टि जयपुर पर पड़ रही हैं। इसीलिए इतने व्यवधान आ रहे हैं। इस पर राजा ने उनकी प्रतिमा को उत्तर दिशा की तरफ मुख करते हुए स्थापित करवाया और जयपुर का निर्माण हो सका।


मंदिर भवन का स्थापत्य व अन्य विशेषताएं 

शिला माता के मंदिर का पुनर्निर्माण 1906 में करवाया था। पूरा मंदिर संगमरमर का बना हुआ है। मंदिर का दरवाजा चांदी का बना हुआ है, जिस पर माता की विभिन्न प्रतिमाएं उकेरी गई है। मंदिर में मीणाओं की कुलदेवी हिंगला की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। कछवाहा वंश से पहले यहाँ मीणाओं का राज हुआ करता था। मीणा राजा हिंगला माता की प्रतिमा को अफगानिस्तान से लाये थे। मंदिर की सेवा-पूजा बंगाली ब्राह्मण परिवार करता आ रहा है।


आमेर की शिला माता के दर्शन का समय 
(Shila Devi Temple Jaipur timings) 

            सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक 
            शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक


नवरात्रि पर माता के दर्शन 

प्रत्येक वर्ष नवरात्रि पर लाखों लोग माता के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस दौरान यहाँ मेला भी लगता हैं। कुछ लोग पदयात्रा करते हुए, तो कुछ लोग दंडवत करते हुए माता दर्शन के लिए आते हैं। माता को गुंजियों और शराब का भोग भी लगाया जाता है। मंदिर के बीच में भैरव मन्दिर भी बना हुआ है। कहा जाता है कि जब माता ने भैरव का वध किया तो भैरव ने माता से कहा था कि आपके दर्शनों के बाद मेरे दर्शन भी भक्त करें। इसीलिए माता के दर्शन करने के बाद भैरव का दर्शन करना अनिवार्य होता है।












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