Anek Review: राजनीति में हिंसा की ‘जरूरत’ का पर्दाफाश करती ‘अनेक’, उत्तर पूर्व के बहाने दिल्ली पर चोट
फिल्म ‘अनेक’ मौजूदा समय पर निर्देशक अनुभव सिन्हा की एक और टिप्पणी है। फिल्म ‘मुल्क’ से जागे अनुभव सिन्हा इसके पहले देश की अलसाती मेधा को ‘आर्टिकल 15’ पढ़वा चुके हैं और ‘थप्पड़’ भी लगा चुके हैं। फिल्म ‘अनेक’ में अनुभव समाज से आगे निकलकर देश की बात कर रहे हैं। वह इस बार देश के उन हिस्सों में पहुंचे हैं, जिनकी शक्ल सूरत देखकर उन्हें अपना मानने की कोशिश देश के मुख्य क्षेत्र में कम ही हो पाई है। फिल्म जरूरी बात करती है। सिनेमाई दायरे में रहकर करती है। और, धारा से विपरीत जाकर कहानियों को कहने का जोखिम भी उठाती है। आयुष्मान खुराना कहते हैं कि फिल्म ‘अनेक’ को बॉक्स ऑफिस की कसौटी पर उस तरह नहीं कसा जाना चाहिए जैसे बाकी कमर्शियल फिल्मों के साथ होता है। लेकिन, फिल्म ‘अनेक’ का ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना जरूरी है। 'द कश्मीर फाइल्स’ के सुपरहिट होने और ‘द केरला स्टोरी’ के रिलीज होने के बीच फिल्म ‘अनेक’ देश की तस्वीर का एक ऐसा पहलू है जिसके बारे में बात होनी जरूरी है। कहानी उत्तर पूर्व के संघर्ष की फिल्म ‘अनेक’ देश के सबसे मशहूर नारे ‘जय जवान जय किसान’ को दो हिस्सों में बांटकर एक दूसरे के आ